Monday, January 24, 2011

sadak k us paar.......

सड़क के उस पार एक बड़ा सा बंगला बन रहा है ,कई लोग काम कर रहे है इस कडकडाती सर्दी में
एक माँ भी अपने दुध्मुहें बच्चें को लेकर आती है ,रोज देखती हूँ मै उसको कोने में लिटा देती बच्चें को
काम पर लग जाती है रोज छोड़ के अपने लाडले को, जब वो रोता है तो बेबस सी देखती वो मालिक की आखो को
अपने लाडले को गोद में उठाना चाहती है पर मालिक की घूरती आखो से देर जाती ,बस गुजती है बेटे की आवाज़ सर्वत्र
ठितुरता वो नन्हा सा माँ के पीछें पीछें  नज़रे उसकी जाती है ,और माँ जरा मालिक से नज़रें चुराकर जरा सा प्यार से पुचकारती है तब किल्कारिया उसकी गूंज सी जाती है ,
बस इतने में ही मालिक देख के घूरता है और माँ डर  सी जाती है ,
काम में लग  जाती है  मालिक एक पल को बच्चे पर हिकारत की नजरो से बच्चें को रोता  देखता रहता है
आज जरा घना सा कोहरा था ,सरसर्ती हवा थी ,शरीर में बर्फ से जमती सी लगती थी ,पर वही रोज की कहानी थी,
तभी एक बड़ी सी कार आती है और उसमे से एक छोटा सा बच्चा और उसकी माँ बाहर आती है ,
और  तीर सा उसका मालिक दौड़ता आता है और लपक उन मैडम के बच्चें को उठ लेता है,
न जाने क्या फर्क था दोनों बच्चो में ,शायद फर्क है इंसानियत की इस नयी आधुनिकता में और पैसे की इस भूख में ......  

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