Friday, January 21, 2011

दंग हूँ दुनिया के दोहरे रूपों से......

                          दंग हूँ दुनिया के दोहरे रूपों से ,दिल में कुछ बातें है जो चुभती है तीरों सी
हर इंसा के इतने रूप है की खो देता है खुद को दुनिया की बातों में
खो दिया है  कहाँ वो प्यार इंसानो ने जो हमें इंसान बनाती थी ,
कभी इस देह को पाने को देवता भी तरसते थे ,
अब इंसान ने खुद को क्या बना लिया
प्यार ,श्रधा और दया कही खो सी  गयी हम इंसानों में ,
है छोटी सी जिंदगी पर इसमे भी घोल दिया जहर जाति पाति का
आज जला दी जाती है बेटी गर है प्यार उसके दिल में किसी के लिए
जला दी जाती है बहु बस चंद रुपयों की झोली को
दुर्गा ,सरस्वती और लक्ष्मी को तो पूजतें है ,
लोग पर घर में ही मार देते है अजन्मी बचि को
                         दंग हूँ दुनिया के दोहेरे रूपों से, दिल में कुछ बातें है जो चुभती है तीरों सी
लड़की हो घर का मान हो कह कर तोड़ देते है समाज हर उसके सपनो को
घर की इज्जत कहकर कुतर दिए जाते है  सपनो के पर,
है रखना हमेशा चहेरे पर मुस्कान तुम्हें चाहे दिल में गम का हो सागर
माँ ने बचपन में बताया था ,हो पराया धन माँ  ने समझाया था,
दूर थी मैं ऐसी कई हकीकतो से ,पर जब सामना हुआ तो नफरत सी होती है ,
भगवान ने तो हमें दिल दिया था रिश्ते निभाने को ,प्यार करने को ,
पर रिश्तो में दिमाग क्यों लगा दिया हमने ,रिश्तो को बाजार बना दिया हमने
दिल तो एक ही है  उसे क्यों न सँभाल सका इंसान ,
इंसान क्यों न रह सका इंसान                      
                    दंग हूँ दुनिया के दोहेरे रूपों से,दिल में कुछ बातें है जो चुभती है तीरों सी



                                                                              प्रियंका........

1 comment:

  1. वाह वाह क्या बात है जी सुंदर
    बहुत ही अच्छी कविता है :)

    ReplyDelete