हर इम्तहान मेरे लिए ही क्यों है,
हर प्रश्न मेरे लिए ही क्यों है है,
अगर ऐसा है तो ऐसा क्यों है,
बेटे की इच्छा करते है सब ,
बेटे के लिए पूजा करते है सब,
बेटी होना इतना बुरा क्यों है,
अगर ऐसा है तो ऐसा क्यों है
हर सेवा करती है बेटी,
हर पल साथ निभाती है बेटी
फिर भी हर पल मरी जाती है बेटी,
अगर ऐसा है तो ऐसा क्यों है
देती है जनम जगत को बेटी ,
पर अस्तित्व को अपने ही खोती है बेटी
सबकी सुनती है अपनी कुछ नहीं कहती है
अगर ऐसा है तो ऐसा क्यों है
पत्नी हूँ मैं ,बेटी हूँ मैं,माँ हूँ मैं,
बहू हूँ मैं ,देवी हूँ हैं ,अन्नपुर्णा हूँ मैं ,
तुम कहते हो सब कुछ हूँ मैं ,
पर जब सब कुछ हूँ बेटी
तो तुम पर इतनी भारी क्यों हूँ
अगर ऐसा है तो ऐसा क्यों है
बंनाते हैं घर की लक्ष्मी मुझे ,
पर अस्मत को रौदते है वही ,
जो माँ जीवन देती है,उसी को तौलते तुम्ही
अगर ऐसा है तो ऐसा क्यूँ है
रात के सन्नाटे में चीत्कार बेटी की है
खिलौना नहीं है ,फिर भी खिलौना है
अँधेरो में रोती है ,जलती बुझती है बेटी
अगर ऐसा है है तो ऐसा क्यूँ है