रहने को तो तेरे शहर में रहते है हम अब भी,
उन गलियों से गुजरते है हम अब भी ,
जहाँ कभी साथ तुम्हारे चलते थे हम भी,
अब उन गलियों में जाने से डरते है हम अब भी
रहने को तो तेरे शहर में रहते है हम अब भी,
हर बार झूठी कसम खाते है उन गलियों में न जाने की
पर हर बार उन गलियों में जा कर ,
तुम्हें खोजती है ये आखें आज भी
रहने को तो तेरे शहर में रहते है हम अब भी,
उन खूबसूरत चौराहों से गुजरते है हम जब भी ,
तुम अहसास बन आ ही जाते हो अब भी,
खुदा की कसम हर बार मर के जीते है हम अब भी
रहने को तो तेरे शहर में रहते है हम अब भी....
kya bat hai ji :) bahut hi achhi poem hai :)
ReplyDeleteSuper lyk :)
thank u soooooooooooooooo much..........
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